Ab jani mo kaha bahakaay
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भगवान का केवल 1 काम है कृपा करना वो अकारण करुण है कृपालु है और कुछ कर ही नहीं सकते
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ये संसार जो आप लोग देख रहे हैं ये ‘कुछ नहीं’ था ये बनाया गया 1 दिन
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गहरी नींद के समय जीवात्मा परमात्मा का मिलन होता है यानि परमात्मा जीवात्मा का आलिंगन करता है तो जीवात्मा मूर्छित हो जाता है आनंद में तो वो उसके इंद्रिय मन बुद्धि सब का वर्क बंद हो जाता है
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गहरी नींद में चूँकि आप माया से युक्त हैं इसलिए निरावरण मिलन नहीं होता ब्रह्म से आपका ‘अज्ञान युक्त’ मिलन होता है इसलिए आपको उस समय ये पता नहीं रहता कि आप परमात्मा से मिल रहे हैं
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जब हम सो के उठते हैं तो फिर हमको ये ज्ञान नहीं रहता की हम ब्रह्म से अलग होके आ रहे हैं क्योंकि हम ‘अज्ञान’ से आवृत है
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अगर अज्ञान रहित हो कर के हम मिलते तो सदा को मिल जाते फिर तो बातें समाप्त हो जाए
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परमात्मा जब आलिंगन करता है जीव का तो जीव को न बाहर की फीलिंग होती है न भीतर की फीलिंग होती है वो शून्य सा हो जाता है
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जीव भगवान का पुत्र है, भगवान उसके सर्वस्व हैं
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जीवों के कल्याण के लिए भगवान दंड विधान भी करते हैं वहाँ भी दया है
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जहाँ मन का प्यार होगा उसी का फल मिल जाएगा है
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जिस पर्सनालिटी का अपना कोई एम/उद्देश्य बाकी न हो अर्थात जो अनंत आनंद प्राप्त कर चुका हो वो कोई वर्क करेगा तो क्यों करेगा, वो दुसरे के लिए ही करेगा और करेगा क्यों या तो कुछ न करे
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जब तक भगवत प्राप्ति नहीं हो जाती तब तक हम लोग अपने लिए ही वर्क करेंगे
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यही स्वार्थ है हमको अनंत आनंद ये हमारा नेचर है, उसी स्वार्थ के लिए हम स्त्री पति बाप बेटा धन प्रतिष्ठा सब कुछ इकट्ठा कर रहे हैं, तत्वज्ञ लोग उसी की प्राप्ति के लिए भगवान महापुरुष की शरण में जा रहे हैं
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तो तुमने कितना कम देखा है इसलिए तुम्हारी देखने की साध बनी हुई है तो बीमारी बनी हुई है तुम्हारी
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ये 5 इंद्रियों की बीमारी इतनी जबरदस्त है की अनंत जन्म बीत गए हम अनंत बार इंद्र बन चुके हैं लेकिन 1 भी इंद्रिय की तृप्ति नहीं हुई बल्कि बढ़ती जा रही है
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भगवान ने 5 इंद्रियों के लिए इतना बड़ा संसार खिलौने के रूप में बना दिया की ये जीव इसी में उलझा रहे, माँ/बाप/बीवी/बच्चों/नाती पोतों से प्यार करे, उलझा रहे इसी में, मेरा स्मरण न करे ये आपने 420 की मेरे साथ
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प्रत्येक जीव के पास बैठकर, प्रत्येक क्षण के, प्रत्येक संकल्प को नोट करते है
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भगवान 1 सेकंड को आपका साथ नहीं छोड़ते
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आत्मा के भीतर रहता है परमात्मा, जैसे दूध में घी व्याप्त है
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भगवान भूख रहित, प्यास रहित, मृत्यु रहित, शोक रहित हैं, ये गुण हमको उनसे लेना है
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जाकी रही भावना जैसी प्रभु मुरती देखी तिन तैसी
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मनुष्य का दिमाग है कितना बड़ा, वो अपने लेवल से देखता है यद्यपि जानता है की हमको अपना दिमाग लगाना नहीं चाहिए भगवत विषय में, जब इंडिया का कानून रशिया में लागू नहीं हो सकता तो हमारे मैटीरियल आइडिया स्पिरिचुअल जगत में ले जाना ही अपराध है उसकी प्रवेश ही नहीं वहाँ पर
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अरे न भगवान को जाने, न भगवान के संतों को जाने, न उस फिलोसफी को जाने तो हम तो अपराध करेंगे ही और क्या करेंगे
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1 बार परमानंद मिल जाए तो अनंतकाल के लिए पक्का हो जाता है फिर वो छिन नहीं सकता आनंद पर दुःख का आधिपत्य नहीं हो सकता, जैसे सूर्य के सामने अंधकार आ ही नहीं सकता उसी प्रकार आनंद मिल जाने के बाद दुःख की पुनरावृति नहीं हो सकती
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अनंत ब्रह्मांड है कितना देखोगे, कितना सुनोगे, कितना सूंघोगे, कितना रस लोगे, कितना स्पर्श करोगे
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ऐ जीव तू कर्ता है कर्म का कर्ता है तेरे अन्दर कर्तृत्व का अभिमान है अच्छा बुरा तू स्वयं सोच कर कर्ता है
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भगवान सर्वत्र वेदों में कहा है मेरी शरण में आ जाए ‘तू कुछ मत कर’ तो फिर मैं सब कुछ करूंगा
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अरे भगवान को बाप ही मान लेते अगर तुम तो बात ही खत्म हो जाए
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तुम करता पन का अहंकार रखते हो अकड़े हो अहंकार में
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1 1 वासना के पीछे शरणागती तुम्हारी घर घर हो रही है मक्कार जीवों के सामने लेकिन भगवान के सामने शरणागत होने में तुम्हे शर्म लगती है
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आत्मा की माँ परमात्मा ‘ही’ है
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घर में 1 माँ बैठी है वो माँ नहीं है वो परिवर्तनशील शरीर की नकली माँ है उसने तुमको नहीं बनाया
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तुम शरीर नहीं हो शरीरी हो, तुम्हारा शरीर है तुम शरीर नहीं हो
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जीव शरणागत होता है भगवान सेवा करते हैं सेवा करने वाला समर्थ चाहिए
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सेवा भगवान करेंगे और नाम है उनका स्वामी ऐसा दयालु है वो इतनी कृपा करने वाला है